वर्ष 2018 श्रीलंका के इतिहास में सबसे बड़ा राजनीतिक संकट के लिए जाना जाएगा |
राजपक्षे की सत्ता में वापसी से भारत की यह चिंता बढ़ गई और अब चीन श्रीलंका पर अपनी पकड़ मजबूत करेगा. लिट्टे के खात्मे के लिए जाने वाले राजपक्षे की दशक-भर लंबे, तानाशाही वाले शासन के चलते व्यापक निन्दा होती है.
इस नेता का पीएम बनने पर बहाल
श्रीलंका के उच्चतम न्यायालय ने हालांकि राष्ट्रपति सिरिसेना को 16 दिसंबर को यूनाइटेड नेशनल पार्टी के नेता विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद पर बहाल करने को विवश कर दिया.
विक्रमसिंघे से मांगा भारत का साथ
विक्रमसिंघे को भारत समर्थक माना जाता है. प्रधानमंत्री के रूप में उनकी पुन: नियुक्ति पर भारत ने राजनीतिक संकट के समाधान का स्वागत किया और विश्वास जताया कि दोनों देशों के बीच संबंध लगातार आगे बढ़ेंगे.
श्रीलंका और चीन एक बार आया था नजदीक
अमेरिका, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और नॉर्वे ने भी श्रीलंका में राजनीतिक संकट के शांतिपूर्ण समाधान का स्वागत किया. राष्ट्रपति के रूप में राजपक्षे के एक दशक लंबे शासनकाल में श्रीलंका चीन के नजदीक आ गया था और बीजिंग ने श्रीलंका की अवसंरचना में गृहयुद्ध के खात्मे के बाद से लाखों डॉलर की राशि लगाई है.
भारत हिंद महासागर को लेकर हुऐ चिंतित
हालांकि चीन के कर्ज की वजह से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने के चलते सिरिसेना-विक्रमसिंघे सरकार के तहत कई परियोजनाओं में बदलाव किया गया. चीन व्यापार मार्गों के विस्तार की अपनी महत्वाकांक्षी योजना में श्रीलंका को महत्वपूर्ण मानता है, जबकि भारत हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित है.
भारत और श्रीलंका के बीच मजबूत संबंध बनाने पर होगी चर्चा
भारत और श्रीलंका ने 2018 में उच्चस्तरीय आदान-प्रदान और समझौतों पर हस्ताक्षरों के साथ अपने संबंधों में गरमाहट रखी.विक्रमसिंघे ने अक्टूबर में भारत का दौरा किया और अपने भारतीय समकक्ष नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने के तौर-तरीकों पर चर्चा की.
इस साल श्रीलंका की अर्थव्यवस्था उम्मीद से धीमी रही. कि लगभग दो महीने तक चले राजनीतिक संकट और इसके चलते पंगु हुई सरकार की वजह से अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता हैं |